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सोमवार, 30 अगस्त 2010





पहाड़ की चोटी पर बसा एक बौद्ध स्कूल

नीले आसमान में तैरते सफेद रूई के फाहे से उड ते बादल, और नीचे दूर तक फैली हरी भरी घाटी। बिल्कुल स्वर्ग का अहसास कराती ये जगह है तवांग। भारत के पुर्वोतर राज्य अरूणाचल प्रदेद्गा का एक जिला तवांग। और यहीं मौजूद है भारत का सबसे बड ा बौद्ध मठ। इसकी मठ की गिनती एद्गिाया के बड े बौद्ध मठों में की जाती है।
तवांग का ये फेमस मठ, तवांग चू घाटी पहुंचते ही दिखने लगता है। सामने पहाड की चोटी पर दिख रहा ये खूबसूरत बनावट ही तवांग मठ विहार है। इस मठ को दुनिया गाल्डेन नामग्याल लात्से के नाम से भी जानती है। बौद्ध धर्म वालों के लिए ये एक बेहद महत्वपूर्ण मठ है। इसका निर्माण १६८०-८१ में हुआ था। इसका निर्माण लामा लोद्रे गियात्सो ने करवाया था।
पहाड की चोटी पर बने इस मठ की समुद्र तल से उंचाई दस हजार फीट है। इस लिहाज से इस मठ को दुनिया के सबसे उंचाई पर बसे बड े बौद्ध विहारों में से एक है। इस मठ में बौद्ध भिक्षुक बौद्ध धर्म की द्गिाक्षा लेते हैं। बौद्ध भिक्षुकों को बचपन से ही बौद्ध धर्म की द्गिाक्षा दी जाने लगती है। इस मठ में लगभग ५०० भिक्षुक हर समय मौजूद होते हैं। ये मठ इस इलाके के लोगों के लिए अपुर्व आस्था का केंद्र है।
यहां पहुंचते ही आप एक ऐसे दुनिया में पहुंच जाते हैं जहां सिर्फ और सिर्फ द्गाांति और प्रेम है। हिंसा का कोई स्थान नहीं। ऐसा लगता है जैसे बुद्धम द्गारणम गच्छामि की पवित्र गुंज आपके रोम रोम में समाते जा रही हो।
यहां छोटे भिक्षुकों को एक कतार में बैठे मंत्रोच्चार करते देखना काफी सुकून देता है। गेरूआ रंग के चोगे में लिपटे और मुंडाये हुए सर लिए ये भिक्षुक बिल्कुल एक से लगते हैं। भिक्षुकों को बौद्ध धर्म की द्गिाक्षा द्गाुरू से ही दी जाने लगती है।
क्योंकि छोटे बच्चों के मन में कोई भी द्गिाअहिंसा और द्गाांति का प्रसार करने वाला ये धर्म बच्चों में बचपन से ही पवित्र भावना भरने लगता है। पर कुछ लोग ये भी मानते हैं कि इससे उनका बचपन छिन सा जाता है। हां ये बच्चे अनुद्गाासन में रहना सीख लेते हैं पर ये कहना पूरी तरह गलत होगा कि बच्चों का बचपन खत्म हो गया है।
हमने यहां छोटे भिक्षुकों में वही चंचलता दिखी जो सामान्यतया संसार के दूसरे बच्चों में होती है। ये बच्चे बड़ी जल्दी यहां आने वाले आगंतुकों से घुलमिल जाते हैं।
मठ के ठीक आगे एक बिल्कुल सपाट सा मैदान है। पहाड ों पर इस तरह का मैदान होना अपने आप में एक अजीब बात है। मैदान पार करते हुए हम मठ में पहुंचे।
लकड ी और पत्थरों की मदद से निर्मित ये मठ काफी खूबसूरत है। मठ का बाहरी हिस्सा बहुत आकर्सक नहीं दिखता। पर जैसे ही आप अंदर प्रवेद्गा करते हैं। आपकी आंखे खुली की खुली रह जाएगी। मुखय पुजा स्थल से बाहर प्रवेद्गा द्वार में की गई सजावट यहां आने वालों का मन मोह लेती है। दिवारों पर खूबसूरत धार्मिक पेंटिंग लगे हुए हैं। रंगों का खूबसूरत प्रयोग यहां दिखता है। यहां घुमने आने वाले सैलानी कुतुहलता से रंगों के इस संसार को देखते हैं। एक चित्र में मुर्गा सांप और सांड एक साथ दिखाए गये हैं। एक दूसरे चित्र में ड्रैगन की सवारी करते किसी बौद्ध देवता संभवतं: महात्मा बुद्ध के ही एक रूप को दिखाया गया है।
यहां जीवन दर्द्गान को बड ी बारीकी से चित्रों के माध्यम से दिखाया गया है। सामने दिख रहे इस दरवाजे के पीछे मौजूद है अराधना स्थल। अराधना स्थल समेत पूरे मठ की काफी बारीकी से साज सज्जा की गई है। रंगीन सिल्क के कपड ों और लकडि यों पर बारीक नक्कासी और रंगों का बेहतरीन प्रयोग कर मठ को भव्यता देने में कोई कसर नहीं छोड ी गई है। इस मठ में एक सबसे खास बात ये नजर आई की यहां लाल रंग का बहुतायत प्रयोग किया गया है। चाहे वो भिक्षुओं की पोद्गााक हो या फिर मठ की सजावट, सबमें लाल रंग का उपयोग किया गया है।क्षा गहरे तक समा जाती है। और यही हमें यहां देखने को मिला। अहिंसा और द्गाांति का प्रसार करने वाला ये धर्म बच्चों में बचपन से ही पवित्र भावना भरने लगता है। पर कुछ लोग ये भी मानते हैं कि इससे उनका बचपन छिन सा जाता है। हां ये बच्चे अनुद्गाासन में रहना सीख लेते हैं पर ये कहना पूरी तरह गलत होगा कि बच्चों का बचपन खत्म हो गया है।

हमने यहां छोटे भिक्षुकों में वही चंचलता दिखी जो सामान्यतया संसार के दूसरे बच्चों में होती है। ये बच्चे बड़ी जल्दी यहां आने वाले आगंतुकों से घुलमिल जाते हैं।
मठ के ठीक आगे एक बिल्कुल सपाट सा मैदान है। पहाड ों पर इस तरह का मैदान होना अपने आप में एक अजीब बात है। मैदान पार करते हुए हम मठ में पहुंचे।
लकड ी और पत्थरों की मदद से निर्मित ये मठ काफी खूबसूरत है। मठ का बाहरी हिस्सा बहुत आकर्सक नहीं दिखता। पर जैसे ही आप अंदर प्रवेद्गा करते हैं। आपकी आंखे खुली की खुली रह जाएगी। मुखय पुजा स्थल से बाहर प्रवेद्गा द्वार में की गई सजावट यहां आने वालों का मन मोह लेती है। दिवारों पर खूबसूरत धार्मिक पेंटिंग लगे हुए हैं। रंगों का खूबसूरत प्रयोग यहां दिखता है। यहां घुमने आने वाले सैलानी कुतुहलता से रंगों के इस संसार को देखते हैं। एक चित्र में मुर्गा सांप और सांड एक साथ दिखाए गये हैं। एक दूसरे चित्र में ड्रैगन की सवारी करते किसी बौद्ध देवता संभवतं: महात्मा बुद्ध के ही एक रूप को दिखाया गया है।
यहां जीवन दर्द्गान को बड ी बारीकी से चित्रों के माध्यम से दिखाया गया है। सामने दिख रहे इस दरवाजे के पीछे मौजूद है अराधना स्थल। अराधना स्थल समेत पूरे मठ की काफी बारीकी से साज सज्जा की गई है। रंगीन सिल्क के कपड ों और लकडि यों पर बारीक नक्कासी और रंगों का बेहतरीन प्रयोग कर मठ को भव्यता देने में कोई कसर नहीं छोड ी गई है। इस मठ में एक सबसे खास बात ये नजर आई की यहां लाल रंग का बहुतायत प्रयोग किया गया है। चाहे वो भिक्षुओं की पोद्गााक हो या फिर मठ की सजावट, सबमें लाल रंग का उपयोग किया गया है।
उपासना उनके द्गिाक्षा का ही एक हिस्सा है। सभी बाल भिक्षुक अपने लाल रंग के चोगे में एक कतार में बैठे इस पूजा पद्धति में द्गाामिल होते हैं। कोई द्गांख बजाता है तो कोई पारंपरित वाद्य यंत्र। यहीं पर उन्हें धर्म की द्गिाक्षा देने वाले गुरू भी बैठेते हैं। जिनके हाथों में होती है पवित्र माला। माला फेरते हुए गुरूजी बच्चों को बौद्ध धर्म के सिद्धातों और द्गिाक्षा का ज्ञान दे रहे होते हैं। बच्चे ध्यान से इन्हे सुनते हैं और इनका उच्चारण करते हैं।
उपासना का ये दौर लंबा चलता है। ये यहां मौजूद सभी भिक्षुओं का डेली रूटीन है। उपासना के बाद भिक्षुक अपने अपने काम में लग जाते हैं।
पूजा के बाद बारी आती है प्रसाद की। भिक्षुक भगवान बुद्ध को भोज्य पदार्थ अर्पित करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। इस दौरान भिक्षु मूर्ति के समीप ही भोजन करते हैं। द्गाायद ये मौका कुछ खास लोगों को ही मिलता है। जिन्हें मठ में कुछ खास ओहदा मिला हुआ होता है।
प्रतिमा काफी भव्य है। यहां बु़द्ध को एक सिंहासन पर स्थापित किया गया है। और पास ही कपड े से बना कोई पवित्र चिन्ह छत से लटका होता है। मूर्ति जिस जगह में स्थापित है उस जगह को काफी खूबसूरती से सजाया गया है।
मठ में पानी की जरूरत पहाड ों से निकलने वाले एक नेचुरल स्प्रिंग से पूरी होती है। पानी को नियंत्रित करने के लिए पानी के उद्‌गम स्थल पर पत्थर की मदद से एक घर बनाकर उसे बांधने का प्रयास किया गया है। इसके पिछले हिस्से में पानी निकलने के लिए सुराख बने हुए हैं। ताकि पानी का बहाव रूके नहीं। और मठ के लिए भी पर्याप्त पानी मिल जाए। भिक्षुक इस पानी से अपनी हर तरह की जरूरतों को पूरा करते हैं। और जब सभी काम निबटा कर भगवान बुद्ध की अराधना में लग जाते हैं।मठ में एक झंडा लगा हुआ है। ये बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पवित्र निद्गाानी है। उनके अराधना स्थल के पास ये झंडा जरूर मौजूद होता है। ये झंडा दूर से ही आस पास के लोगों को दिखता रहे इसलिए इसे उंचा रखा जाता हैं।
ये मठ और ये पवित्र झंडा, आस पास के लोगों के लिए घोर आस्था का केंद्र है। वो अपना काम करते रहते हैं पर मन और वातावरण में भगवान बुद्ध बराबर बने होते हैं। यहां के लोग काफी मेहनती हैं। खास तौर पर स्त्रियां। दिन भर के काम के बाद जब ये घर लौटती तो पहले ये देवता के पास हाथ जोड़ती है और उसके बाद ही अगला काम करती है। यहां घरों में भी मंदिर होते हैं। जिनमें विद्गोस रूप की घंटिंया, धम्म चक्र लगी होती है।
यहां एक खास बात ये दिखी की सबके घर एक जैसे होते हैं। सबकी उंचाई भी एक समान होती है। द्गाायद इसीलिए की मठ और उसका पवित्र झंडा गांव के किसी भी कोने से दिखता रहे और लोगों में अपुर्व श्रद्धा का भाव जगाते रहे।

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