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सोमवार, 30 अगस्त 2010

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कॉमनमैन नहीं कॉमनवेल्थ जनाब

२२,३०० करोड़
और ये आंकड ा है देद्गा में स्वास्थ्य पर किए जाने वाले सलाना खर्च का।
११९९४ करोड
ये आंकड ा है कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन पर होने वाले खर्च का।

जी हां देद्गा में स्वास्थ्य पर सलाना होने वाले खर्च का आधे से ज्यादा खर्च दिल्ली में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन पर खर्च किए जा रहे हैं। महज ११ दिनों तक चलने वाले ये गेम्स देद्गा के लिए प्रतिस्ठा की बात बन गए हैं। गेम्स को हर हाल में सफल बनाना है, ये सरकार के लिए आन, बान और द्गाान की बात हो गई है।
११ दिन
सिर्फ ११ दिन
साल के ३६५ दिन पर भारी पड ते दिख रहे हैं।
ये आलम तब है जब विद्गव स्वास्थ्य संगठन की कई रिपोर्टों में भारत दुनिया के गरीब देद्गाों की सूची में नजर आता है। कुपोसण जैसे मामलों में तो ये दुनिया का सरताज है। लेकिन तेजी से तरक्की करते देद्गा का इन रिपोर्टों पर ध्यान नहीं जाता। उसे इस बात की कोई भी फिक्र नहीं है कि स्वास्थ्य के मामले में वो विकासद्गाील देद्गाों के साथ खड ा है। उसके लिए कॉमन मैन नहीं कॉमनवेल्थ सभी हितों से उपर है। सरकार की प्राथमिकताओं की सूची में कॉमनवेल्थ गेम्स कब और कैसे सबसे उपर पहुचं गया , ये बात बुद्धिजिवियों के साथ साथ खुद सरकार के लिए भी चौंकाने वाली है।
स्वास्थ्य के मामले में यूं तो द्गाुरू से हमारे देद्गा की सरकार लापारवाह रही है। लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह से बजट में इसके लिए आवंटन बढ ाया गया था, उससे काफी उम्मीदें जगी थी। लग रहा था कि सरकार को हेल्थ इज वेल्थ का मर्म समझ आ गया है। उसे अपनी जनता की सेहत का खयाल आ गया है। वास्तविकता के धरातल पर चाहे जो हो।
लेकिन कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन करने जा रहे देद्गा में इस खेल की तारीख जैसे जैसे नजदीक आती गई, हर बात द्गाीद्गो की तरह साफ होती गई।
जिस खेल के लिए द्गाुरू में अनुमानित बजट ६६५ करोड़ तय किए गए थे, वो आज की तारीख में १८ गुना हो गया है। जी हां २ यो ३ गुना नहीं बल्कि १८ गुना।
दूसरी ओर साल २०१०-११ के लिए सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए आंवटन में करीब १० फीसदी की वृद्धि ही की गई थी। वित्त मंत्री ने स्वास्थ्य बजट को १९,५३४ करोड से बढ ाकर २२,३०० करोड कर, केंद्र सरकार की वाह वाही करवाई थी।
अब जबकि कॉमनवेल्थ गेम्स पर किए जानेवाले खर्च का ब्योरा सामने आया तो सबके होद्गा उड गए। आम आदमी ही नहीं विद्गोसज्ञों के लिए भी ये आंकड े बेहद चौंकाने वाले थे। लेकिन इससे पहले की सरकार इन आंकड ों की लीपा पोती करती, खुद योजना आयोग ने उसकी पोल पट्‌टी खोल कर रख दी, कि सरकार किस कदर स्वास्थ्य के मामले उदासीन है।
योजना आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक आम आदमी से टैक्स के रूप में करोड ों रूपए उगाहने वाली सरकार, स्वास्थ्य सेवा जैसे अति महत्वपूर्ण क्षेत्र में आम लोगों को धेले से ज्यादा कुछ नहीं देती। इस मामले में पूरी तरह से उसे खुद की जेब पर निर्भर रहना पड ता है। सरकार की तरफ से मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाएं, उसके स्वास्थ्य पर होने वाली सलाना खर्च को महज २५ फीसदी हिस्सा ही वहन करती है। हद तो तब हो गई जब देद्गा में आर्थिक सूधार की नीतियां लागू हुईं।
रिपोर्ट कहती है १९९० में स्वास्थ्य पर केंद्र की तरफ से जहां जीडीपी का १.३ फीसदी हिस्सा खर्च किया जाता था। १९९९ आते आते ये घटकर ०.९ फीसदी पर आ गया। रास्ट्रीय बजट में इसके लिए १.३ हिस्सा तो आवंटित होता रहा, लेकिन राजकीय स्तर पर ये खर्च ७ फीसदी से घटकर ५.५ फीसदी पर आ गया। आज आम आदमी के स्वास्थ्य पर सरकार की तरफ से सलाना १६० रूपए ही खर्चती है।
पर इससे भी ज्यादा चौंकानेवाली बात ये है कि सरकार स्वास्थ्य पर किए जाने वाले कुल खर्च में से ८५ फीसदी हिस्सा रोगों के उपचार पर खर्च करती है। जबकि महज १५ फीसदी हिस्सा रोगों की रोकथाम पर खर्च किया जाता है। नतीजा देद्गा में विभिन्न रोगों से पीडि तो मरीजों की संखया लगातार बढ रही है।
यही वजह है कि स्वास्थ्य के मामले में भारत विकसित देद्गाों से कोसों दूर है। विद्गव स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक और इसकी वजह है इस क्षेत्र में सरकार की तरफ से खर्च की जानेवाली कम राद्गिा। विकसित देद्गाों की छोड़िए, विकासद्गाील देद्गाों में स्वास्थ्य पर किया जाने वाला औसत खर्च कुल जीडीपी का २.८ फीसदी है। जबकि भारत का ०.९ फीसदी। ऐसे में किस मुंह से ये विकसित देद्गाों की सूची में द्यद्गाामिल होने को आतूर है।बेहतरीन सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में दुनिया के १७५ देद्गाों की सूची में ये १७१वें नंबर पर मौजूद है।
और इसकी वजह है इस क्षेत्र में सरकार की तरफ से खर्च की जानेवाली कम राद्गिा। विकसित देद्गाों की छोड़िए, विकासद्गाील देद्गाों में स्वास्थ्य पर किया जाने वाला औसत खर्च कुल जीडीपी का २.८ फीसदी है। जबकि भारत का ०.९ फीसदी। ऐसे में किस मुंह से ये विकसित देद्गाों की सूची में द्यद्गाामिल होने को आतूर है।





पहाड़ की चोटी पर बसा एक बौद्ध स्कूल

नीले आसमान में तैरते सफेद रूई के फाहे से उड ते बादल, और नीचे दूर तक फैली हरी भरी घाटी। बिल्कुल स्वर्ग का अहसास कराती ये जगह है तवांग। भारत के पुर्वोतर राज्य अरूणाचल प्रदेद्गा का एक जिला तवांग। और यहीं मौजूद है भारत का सबसे बड ा बौद्ध मठ। इसकी मठ की गिनती एद्गिाया के बड े बौद्ध मठों में की जाती है।
तवांग का ये फेमस मठ, तवांग चू घाटी पहुंचते ही दिखने लगता है। सामने पहाड की चोटी पर दिख रहा ये खूबसूरत बनावट ही तवांग मठ विहार है। इस मठ को दुनिया गाल्डेन नामग्याल लात्से के नाम से भी जानती है। बौद्ध धर्म वालों के लिए ये एक बेहद महत्वपूर्ण मठ है। इसका निर्माण १६८०-८१ में हुआ था। इसका निर्माण लामा लोद्रे गियात्सो ने करवाया था।
पहाड की चोटी पर बने इस मठ की समुद्र तल से उंचाई दस हजार फीट है। इस लिहाज से इस मठ को दुनिया के सबसे उंचाई पर बसे बड े बौद्ध विहारों में से एक है। इस मठ में बौद्ध भिक्षुक बौद्ध धर्म की द्गिाक्षा लेते हैं। बौद्ध भिक्षुकों को बचपन से ही बौद्ध धर्म की द्गिाक्षा दी जाने लगती है। इस मठ में लगभग ५०० भिक्षुक हर समय मौजूद होते हैं। ये मठ इस इलाके के लोगों के लिए अपुर्व आस्था का केंद्र है।
यहां पहुंचते ही आप एक ऐसे दुनिया में पहुंच जाते हैं जहां सिर्फ और सिर्फ द्गाांति और प्रेम है। हिंसा का कोई स्थान नहीं। ऐसा लगता है जैसे बुद्धम द्गारणम गच्छामि की पवित्र गुंज आपके रोम रोम में समाते जा रही हो।
यहां छोटे भिक्षुकों को एक कतार में बैठे मंत्रोच्चार करते देखना काफी सुकून देता है। गेरूआ रंग के चोगे में लिपटे और मुंडाये हुए सर लिए ये भिक्षुक बिल्कुल एक से लगते हैं। भिक्षुकों को बौद्ध धर्म की द्गिाक्षा द्गाुरू से ही दी जाने लगती है।
क्योंकि छोटे बच्चों के मन में कोई भी द्गिाअहिंसा और द्गाांति का प्रसार करने वाला ये धर्म बच्चों में बचपन से ही पवित्र भावना भरने लगता है। पर कुछ लोग ये भी मानते हैं कि इससे उनका बचपन छिन सा जाता है। हां ये बच्चे अनुद्गाासन में रहना सीख लेते हैं पर ये कहना पूरी तरह गलत होगा कि बच्चों का बचपन खत्म हो गया है।
हमने यहां छोटे भिक्षुकों में वही चंचलता दिखी जो सामान्यतया संसार के दूसरे बच्चों में होती है। ये बच्चे बड़ी जल्दी यहां आने वाले आगंतुकों से घुलमिल जाते हैं।
मठ के ठीक आगे एक बिल्कुल सपाट सा मैदान है। पहाड ों पर इस तरह का मैदान होना अपने आप में एक अजीब बात है। मैदान पार करते हुए हम मठ में पहुंचे।
लकड ी और पत्थरों की मदद से निर्मित ये मठ काफी खूबसूरत है। मठ का बाहरी हिस्सा बहुत आकर्सक नहीं दिखता। पर जैसे ही आप अंदर प्रवेद्गा करते हैं। आपकी आंखे खुली की खुली रह जाएगी। मुखय पुजा स्थल से बाहर प्रवेद्गा द्वार में की गई सजावट यहां आने वालों का मन मोह लेती है। दिवारों पर खूबसूरत धार्मिक पेंटिंग लगे हुए हैं। रंगों का खूबसूरत प्रयोग यहां दिखता है। यहां घुमने आने वाले सैलानी कुतुहलता से रंगों के इस संसार को देखते हैं। एक चित्र में मुर्गा सांप और सांड एक साथ दिखाए गये हैं। एक दूसरे चित्र में ड्रैगन की सवारी करते किसी बौद्ध देवता संभवतं: महात्मा बुद्ध के ही एक रूप को दिखाया गया है।
यहां जीवन दर्द्गान को बड ी बारीकी से चित्रों के माध्यम से दिखाया गया है। सामने दिख रहे इस दरवाजे के पीछे मौजूद है अराधना स्थल। अराधना स्थल समेत पूरे मठ की काफी बारीकी से साज सज्जा की गई है। रंगीन सिल्क के कपड ों और लकडि यों पर बारीक नक्कासी और रंगों का बेहतरीन प्रयोग कर मठ को भव्यता देने में कोई कसर नहीं छोड ी गई है। इस मठ में एक सबसे खास बात ये नजर आई की यहां लाल रंग का बहुतायत प्रयोग किया गया है। चाहे वो भिक्षुओं की पोद्गााक हो या फिर मठ की सजावट, सबमें लाल रंग का उपयोग किया गया है।क्षा गहरे तक समा जाती है। और यही हमें यहां देखने को मिला। अहिंसा और द्गाांति का प्रसार करने वाला ये धर्म बच्चों में बचपन से ही पवित्र भावना भरने लगता है। पर कुछ लोग ये भी मानते हैं कि इससे उनका बचपन छिन सा जाता है। हां ये बच्चे अनुद्गाासन में रहना सीख लेते हैं पर ये कहना पूरी तरह गलत होगा कि बच्चों का बचपन खत्म हो गया है।

हमने यहां छोटे भिक्षुकों में वही चंचलता दिखी जो सामान्यतया संसार के दूसरे बच्चों में होती है। ये बच्चे बड़ी जल्दी यहां आने वाले आगंतुकों से घुलमिल जाते हैं।
मठ के ठीक आगे एक बिल्कुल सपाट सा मैदान है। पहाड ों पर इस तरह का मैदान होना अपने आप में एक अजीब बात है। मैदान पार करते हुए हम मठ में पहुंचे।
लकड ी और पत्थरों की मदद से निर्मित ये मठ काफी खूबसूरत है। मठ का बाहरी हिस्सा बहुत आकर्सक नहीं दिखता। पर जैसे ही आप अंदर प्रवेद्गा करते हैं। आपकी आंखे खुली की खुली रह जाएगी। मुखय पुजा स्थल से बाहर प्रवेद्गा द्वार में की गई सजावट यहां आने वालों का मन मोह लेती है। दिवारों पर खूबसूरत धार्मिक पेंटिंग लगे हुए हैं। रंगों का खूबसूरत प्रयोग यहां दिखता है। यहां घुमने आने वाले सैलानी कुतुहलता से रंगों के इस संसार को देखते हैं। एक चित्र में मुर्गा सांप और सांड एक साथ दिखाए गये हैं। एक दूसरे चित्र में ड्रैगन की सवारी करते किसी बौद्ध देवता संभवतं: महात्मा बुद्ध के ही एक रूप को दिखाया गया है।
यहां जीवन दर्द्गान को बड ी बारीकी से चित्रों के माध्यम से दिखाया गया है। सामने दिख रहे इस दरवाजे के पीछे मौजूद है अराधना स्थल। अराधना स्थल समेत पूरे मठ की काफी बारीकी से साज सज्जा की गई है। रंगीन सिल्क के कपड ों और लकडि यों पर बारीक नक्कासी और रंगों का बेहतरीन प्रयोग कर मठ को भव्यता देने में कोई कसर नहीं छोड ी गई है। इस मठ में एक सबसे खास बात ये नजर आई की यहां लाल रंग का बहुतायत प्रयोग किया गया है। चाहे वो भिक्षुओं की पोद्गााक हो या फिर मठ की सजावट, सबमें लाल रंग का उपयोग किया गया है।
उपासना उनके द्गिाक्षा का ही एक हिस्सा है। सभी बाल भिक्षुक अपने लाल रंग के चोगे में एक कतार में बैठे इस पूजा पद्धति में द्गाामिल होते हैं। कोई द्गांख बजाता है तो कोई पारंपरित वाद्य यंत्र। यहीं पर उन्हें धर्म की द्गिाक्षा देने वाले गुरू भी बैठेते हैं। जिनके हाथों में होती है पवित्र माला। माला फेरते हुए गुरूजी बच्चों को बौद्ध धर्म के सिद्धातों और द्गिाक्षा का ज्ञान दे रहे होते हैं। बच्चे ध्यान से इन्हे सुनते हैं और इनका उच्चारण करते हैं।
उपासना का ये दौर लंबा चलता है। ये यहां मौजूद सभी भिक्षुओं का डेली रूटीन है। उपासना के बाद भिक्षुक अपने अपने काम में लग जाते हैं।
पूजा के बाद बारी आती है प्रसाद की। भिक्षुक भगवान बुद्ध को भोज्य पदार्थ अर्पित करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। इस दौरान भिक्षु मूर्ति के समीप ही भोजन करते हैं। द्गाायद ये मौका कुछ खास लोगों को ही मिलता है। जिन्हें मठ में कुछ खास ओहदा मिला हुआ होता है।
प्रतिमा काफी भव्य है। यहां बु़द्ध को एक सिंहासन पर स्थापित किया गया है। और पास ही कपड े से बना कोई पवित्र चिन्ह छत से लटका होता है। मूर्ति जिस जगह में स्थापित है उस जगह को काफी खूबसूरती से सजाया गया है।
मठ में पानी की जरूरत पहाड ों से निकलने वाले एक नेचुरल स्प्रिंग से पूरी होती है। पानी को नियंत्रित करने के लिए पानी के उद्‌गम स्थल पर पत्थर की मदद से एक घर बनाकर उसे बांधने का प्रयास किया गया है। इसके पिछले हिस्से में पानी निकलने के लिए सुराख बने हुए हैं। ताकि पानी का बहाव रूके नहीं। और मठ के लिए भी पर्याप्त पानी मिल जाए। भिक्षुक इस पानी से अपनी हर तरह की जरूरतों को पूरा करते हैं। और जब सभी काम निबटा कर भगवान बुद्ध की अराधना में लग जाते हैं।मठ में एक झंडा लगा हुआ है। ये बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पवित्र निद्गाानी है। उनके अराधना स्थल के पास ये झंडा जरूर मौजूद होता है। ये झंडा दूर से ही आस पास के लोगों को दिखता रहे इसलिए इसे उंचा रखा जाता हैं।
ये मठ और ये पवित्र झंडा, आस पास के लोगों के लिए घोर आस्था का केंद्र है। वो अपना काम करते रहते हैं पर मन और वातावरण में भगवान बुद्ध बराबर बने होते हैं। यहां के लोग काफी मेहनती हैं। खास तौर पर स्त्रियां। दिन भर के काम के बाद जब ये घर लौटती तो पहले ये देवता के पास हाथ जोड़ती है और उसके बाद ही अगला काम करती है। यहां घरों में भी मंदिर होते हैं। जिनमें विद्गोस रूप की घंटिंया, धम्म चक्र लगी होती है।
यहां एक खास बात ये दिखी की सबके घर एक जैसे होते हैं। सबकी उंचाई भी एक समान होती है। द्गाायद इसीलिए की मठ और उसका पवित्र झंडा गांव के किसी भी कोने से दिखता रहे और लोगों में अपुर्व श्रद्धा का भाव जगाते रहे।

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